रविवार, ३० जून, २०१९

वज्रेश्वरी (तहसील-भिवंडी, जिला-ठाणे) / Vajreshvari (Tahasil- Bhivandi, Jila-Thane)



भिवंडी शहर के उत्तर में 29 किमी की दूरी पर ताणसा नदी के किनारे वज्रेश्वरी नामक महत्त्वपूर्ण धार्मिक पर्यटन केंद्र है. इस स्थल का वास्तविक नाम वडवली था. परंतु वज्रेश्वरी  माता के कारण यह उसी नाम से जाना जाने लगा. यह स्थान यहाँ के गर्म पानी के झरनों के कारण भी प्रसिद्ध है.
मूलतः वज्रेश्वरी का मंदिर बहुत ही छोटा था. चिमाजी आप्पा ने पुर्तगालियों पर प्राप्त की विजय के फलस्वरूप नए मंदिर का निर्माण कराया गया. तदुपरान्त बड़ोदरा के खंडेराव गायकवाड ने भव्य प्रवेशद्वार का निर्माण कर मंदिर की सुंदरता में अपना योगदान दिया. छोटे-से टीले पर स्थित यह मंदिर बहुत ही सुंदर दिखाई देता है. मंदिर में प्रशस्त सभामंडप है तथा गर्भगृह में वज्रेश्वरी माता की मूर्ति है.  इस मुख्य मूर्ति के दाईं ओर रेणुका तथा बाईं ओर काली माता एवं व्याघ्रेश्वरी की मूर्तियाँ हैं. इसके अतिरिक्त यहाँ अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी हैं. मंदिर के सामने दीपस्तंभ खड़े हैं.
‘वज्रेश्वरी महात्म्य’ के अनुसार कालिकल नामक असुर ने तीनों संसार पर विजय प्राप्ति के उद्देश्य से भगवान शिव की घनघोर तपस्या की. शिव जी ने प्रसन्न होकर उससे इच्छित वरदान माँगने को कहा. तब उसने देवी-देवताओं एवं ऋषि-मुनियों को पराजित करने हेतु शक्तिशाली सेना, शस्त्रास्त्र एवं देवताओं के अस्त्रों को विफल करा देनेवाली विद्या, इस प्रकार के तीन वरदान प्राप्त किए. इन वरदानों की प्राप्ति के बाद वह ऋषि-मुनि एवं देवी-देवताओं पर अत्याचार करने लगा. पीड़ित ऋषियों ने जंगल क्षेत्र के बाहर ईश्वरी देवी को प्रसन्न करने के लिए महायज्ञ शुरू किया. देवी ने प्रसन्न होकर उन्हें मदद करने का वचन दिया. असुरों एवं देवताओं के बीच भयंकर युद्ध छिड़ा. अनेकों मारे गए. देवताओं के राजा इंद्र ने केवल वज्र को छोडकर अन्य सभी शस्त्रास्त्रों को आजमाया, परंतु उन सभी को कालिकल ने निरस्त किया. जब इंद्र ने अपने वज्र का प्रहार किया तब उसने उसे भी निष्फल कर उसके दो टुकड़े किए. परंतु आकस्मात उन टुकड़ों से देवी माता प्रकट हुई और उसने कालिकल को मार डाला. तब से वह देवी माता ‘वज्रेश्वरी के नाम से प्रसिद्ध हुई.
चैत माह में यहाँ विशाल यात्रा का आयोजन किया जाता है. यहाँ की ऊष्ण जलधारा को विभिन्न कुंडों में रूपांतरित किया गया है तथा इन्हें अग्निकुंड, सूर्यकुंड, चंद्रकुंड, वायुकुंड, रामकुंड, लक्ष्मणकुंड एवं सीताकुंड नाम दिये गए हैं. माना जाता है कि इन कुंडों में स्नान करने से त्वचा की बीमारियों से छुटकारा मिलता है. स्थानीय परंपरा के अनुसार यहाँ के फॉस्फेट युक्त पानी को राक्षस का रक्त माना जाता है. वज्रेश्वरी से केवल डेढ़ किमी की दूरी पर अकलोली में महेश्वर महादेव का मंदिर है. इस मंदिर के सामने भी ऊष्ण पानी के तीन झरने हैं. पास ही ‘गणेशपुरी’ में गुरुदेव सिद्ध पीठ मंदिर’, नित्यानंद महाराज समाधि मंदिर एवं भीमेश्वर मंदिर हैं. गुरु-पूर्णिमा के दिन यहाँ विशाल यात्रा का आयोजन होता है. यहाँ जाने के लिए ठाणे, वसई, मुंबई से बसगाड़ियों की सुविधा है. (नाला-सोपारा-29 किमी, भिवंडी-29 किमी, कल्याण-37 किमी, टिटवाला-39 किमी, अंबरनाथ-50 किमी, मुंबई-66)
कल्याण तहसील के शहाड़ में विट्ठल जी का सुंदर एवं भव्य मंदिर है, यह बिरला मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. शहाड़ के लिए उपनगरीय रेल (लोकल्स) की भी सुविधा है. ठाणे का ‘कोपिनेश्वर’ मंदिर भी दर्शनीय है.