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संभवतः भगवान विष्णु की प्रतिमा |
मंगलवेढ़ा नामक एक प्रमुख तीर्थस्थल पंढरपुर से 21 किमी की दूरी पर है. इस स्थान के नाम की उत्त्पति से संबंधित दो विचार प्रवाह जुड़े हुए हैं. पहले विचार प्रवाह के अनुसार यहाँ राज्य करने वाले ‘मंगल’ नामक राजा के कारण यह नाम पड़ा तथा दूसरे के अनुसार गाँव में स्थित ‘मंगलाई’ माता के कारण इसे ‘मंगलवेढ़ा’ नाम प्राप्त हुआ. यहाँ पर मिलनेवाले पुरावशेष 9-11वीं शताब्दी के भी पीछे तक ले जाते हैं.
चालुक्य, कलचुरी राजवंशों के समय यह एक प्रमुख स्थान था. कुछ समय तक यह प्रदेश देवगिरि के यादवों के अधिपत्य में भी रहा. अंततः लगभग 14वीं शताब्दी में यह बहमनी राज्य का अंग बना रहा. मंगलवेढ़ा में जगह-जगह प्राचीन पुरावशेष बिखरे पड़े हैं.
इनमें भगवान विष्णु, ब्रह्मा, नागदेवता, जैन प्रतिमाएँ, ऋषि प्रतिमा, विभिन्न
मंदिरों के स्तंभ, गढ़ी, मंदिर, बारव आदि शिल्प एवं स्थापत्य रचना प्रमुख हैं.
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ब्रह्मा, काशी विश्वेश्वर मंदिर के पास |
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जैन तीर्थंकर |
मंगलवेढ़ा
में महाराष्ट्र के महान संत चोखामेला का मंदिर है. वे पंढरपुर के विट्ठल जी के
परमभक्त थे तथा संत ज्ञानेश्वर के समकालीन थे. चोखामेला ने भक्ति मार्ग के साथ-साथ
समाजोद्धार का भी महान कार्य किया. सन 1338 में एक किलेनुमा भवन के निर्माण कार्य
में दीवार के धँस जाने के हादसे में उनका दुखद निधन हुआ. इस हादसे में अन्य लोगों
को भी अपने प्राण गँवाने पड़े. यह समाचार सुनकर संत नामदेव जी तत्काल मंगलवेढ़ा आये
तथा चोखामेला की अस्थियों को पंढरपुर ले गए, बाद में चोखामेला की समाधि बनवाई गई.
मंगलवेढ़ा
में ही 13वीं शताब्दी में संत कवयित्री कान्होपात्रा का जन्म हुआ था. वह पंढरपुर
के भगवान विट्ठल जी को पूजती थीं. उन्होंने अनेक अभंगों की रचना की थी. उनके अभंग
चरित्र महिपतिकृत ‘भक्त-विजय’ नामक ग्रन्थ में आये हैं. स्थानीय कथानुसार जब समाज
विघातक लोगों द्वारा उनसे छल किया जाने लगा था तब वह हमेशा के लिए पंढरपुर आकर
विट्ठल जी की भक्ति करने लगीं.
धर्म
एवं मानवता के लिए अपना जीवन अर्पण करनेवाले संत दामाजी भी मंगलवेढ़ा के निवासी थे.
वे बीदर की सल्तनत में भू-राजस्व अधिकारी थे. वे अपनी जिम्मेदारी को निभाते हुये
विट्ठल जी की भक्ति भी किया करते थे. सन 1458-60 में महाराष्ट्र में भयंकर अकाल
पड़ा था. भुखमरी से सैकड़ों लोगों की जाने जा रही थीं. परन्तु सरकारी गोदाम अनाज़ों
से भरे पड़े थे. भू-राजस्व अधिकारी के नाते उन्होंने सुलतान की आज्ञा के बिना ही
गोदाम आम लोगों के लिए खोल दिए. उनकी इस अवज्ञा से क्रोधित होकर बहमनी सुलतान
हुमायूँ ने उन्हें कैद करके अपने सामने हाज़िर करने का हुक्म दिया. कहा जाता है कि
दामाजी के बीदर पहुँचने के पहले ही विट्ठल भगवान ने एक हरिजन के वेश में बीदर
दरबार में आकर बाँटे गए अनाज का मूल्य चुकता किया. दामाजी ने अस्पृश्यता निवारण का
कार्य भी किया. हर वर्ष पौष महीने में मंगलवेढ़ा में उनके स्मरणार्थ यात्रा का
आयोजन किया जाता है.
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बारव, काशी विश्वेश्वर मंदिर |
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बुर्ज के अवशेष, मंगलवेढ़ा |
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काशी-विश्वेश्वर मंदिर का सामान्य दृश्य |
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गैबी पीर की दरगाह |