सोमवार, १५ जुलै, २०१९

शक्तिपीठ तुलजापुर का पर्यटन/ Shaktipith Tuljapur ka paryatan



महाराष्ट्र की कुलदेवी के रूप में माता 'तुलजा भवानी' को पूजा जाता है. महाराष्ट्र के साढ़े तीन शक्तिपीठों में तुलजापुर को प्रमुख स्थान प्राप्त है. यह मराठवाड़ा के धाराशिव (अब उस्मानाबाद) जिले में स्थित है.
'स्कन्द' एवं 'मार्कंडेय' पुराणों में देवी के अवतार संबंधी संदर्भ प्राप्त होते हैं. महिषासुर नामक क्रूर दैत्य का संहार कर माता ने प्रजा को संकटमुक्त किया, इसलिए इन्हें 'महिषासुर–मर्दिनी' भी कहा जाता है. यह वीरों को शक्ति एवं स्फूर्ति प्रदान करानेवाली, सकंटमोचनी, भक्तों की मनोकामनाएँ पूर्ण करनेवाली देवी है. माना जाता है कि मराठा स्वराज्य संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज को सुप्रसिद्ध भवानी तलवार यहीं से प्राप्त हुई थी, जिससे उन्होंने मुग़ल एवं अन्य आक्रमणकारियों से प्रजा की रक्षा की. यहाँ के मराठा पुजारी भक्तगणों की सेवा में हमेशा तत्पर रहते हैं. इनसे प्राप्त दस्तावेजों में शिवाजी महाराज के अलावा छत्रपति शाहू, महादजी सिंधिया, धनाजी जाधव, हम्बीरराव मोहिते, बालाजी बाजीराव आदि महान विभूतियों के यहाँ आने के संदर्भ प्राप्त होते हैं.
छत्रपति शिवाजी महाराज महाद्वार, तुलजाभवानी मंदिर


भवानी मंदिर, नगर के पश्चिमी भाग में पहाड़ी-ढलान पर प्रकृति की गोद में बसा हुआ है. मंदिर परिसर विस्तृत एवं अद्भुत है. मंदिर परिसर में प्रवेश 'शहाजी' या 'जीजामाता' महाद्वारों से किया जा सकता है. इनसे मंदिर की ओर नीचे उतरने के लिए सीढ़ियाँ बनाई गई हैं. यहाँ से उतरते ही बाईं ओर 'कल्लोल तीर्थ' तथा दाईं ओर 'गोमुख तीर्थ' हैं. इसमें स्नान करने की परंपरा प्राचीन समय से है. यहाँ से आगे बढ़ते ही देवी-देवताओं की मूर्तियाँ हैं, जिनके दर्शन लेकर हम 'सरदार निम्बालकर' दरवाजे से मुख्य मंदिर प्रांगण में प्रवेश करते हैं. इसी दरवाजे के दोनों ओर गणपति एवं मातंगी देवी के मंदिर हैं. यहाँ से आगे बढ़ते ही होमकुंड एवं मंदिर की विशाल वास्तु का आकर्षक रूप दिख जाता है.

तुलजाभवानी मंदिर

होमकुंड में विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान एवं होम-हवन किये जाते हैं. इसकी वास्तु पर आकर्षक शिखर है, जिस पर ऋषि-मुनियों एवं पशु-पक्षियों की सुंदर मूर्तियाँ बनाई गईं हैं. होमकुंड से आगे ही पीपल का विशाल वृक्ष मंदिर की शोभा बढ़ाता है. मंदिर का शिखर अर्वाचिन है परंतु सभामंड़प में स्थित स्तंभों एवं अन्य वास्तु रचना को देखकर इसकी सुंदरता एवं भव्यता का एहसास किया जा सकता है. सभागृह से ही गर्भगृह में स्थित माता के उज्ज्वल मुखमंडल के दर्शन पाकर अपार शांति एवं पवित्रता की अनुभूति से मनुष्य माता के सामने नतमस्तक हो जाता है. माता की मूर्ति अष्टभुजाधारी है. इस मूर्ति के दोनों ओर मार्कंडेय ऋषि एवं सिंह की प्रतिकृतियाँ हैं, साथ ही महिषासुर वध का दृश्य भी उकेरा गया है. गर्भगृह के सामने रखी गई सिंह की मूर्ति भक्तों का ध्यान अपनी ओर खींच लेती है. यह माता का वाहन है.
गर्भगृह के बाईं ओर माता का शयनगृह है. यहाँ से वापस सभागृह में आते ही 'भवानी शंकर' के दर्शन होते हैं. मंदिर के बाहर प्रदक्षिणा मार्ग में खंडोबा, नरसिंह, दत्तगुरु आदि देवी-देवताओं के मंदिर दृष्टिगोचर होते हैं. इसी मार्ग में मंदिर के पार्श्वभाग में 'शिवाजी महाद्वार' है. यहाँ से 'अराधवाडी' में स्थित भारतीबुवा मठ के दूर से दर्शन होते है. इस मठ के पीछे दूर एक टीले पर खंडोबा का मंदिर भी है, जो दूर से सैलानियों एवं भक्तों का ध्यान आकर्षित करता है.
खंडोबा मंदिर, तुलजापुर

तुलजापुर में हरदिन भक्तों का मेला-सा लगा रहता है. नवरात्रि में विशाल जनसागर का रूप यहाँ देखने मिल जाता है. देश के कोने-कोने से लाखों भक्तगण यहाँ आते रहते हैं.
भवानी मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित पहाड़ी ढलान पर 'घाटशिल' नामक स्थान है. यह स्थान मार्कन्डेय ऋषि तथा प्रभु राम से संबंधित माना जाता है. भक्तगणों की श्रद्धा है कि जब सीता की खोज के लिए राम निकले थे तो उन्हें इसी 'दक्षिणापथ' प्रांत से गुज़रना पड़ा था. यह वही स्थान है जहाँ पार्वती ने सीता का रूप धारण कर राम के एक पत्नित्व की परीक्षा ली थी, जिसमें राम सफ़ल हुए. पार्वती ने प्रसन्न होकर उन्हें दक्षिण का मार्ग दिखाया तथा आशीर्वाद देकर विदा किया.

घाटशिल, तुलजापुर
यहाँ की पहाड़ी से दक्षिण दिशा का दूर तक का क्षेत्र दिखाई देता है. यहाँ से आगेवाली पहाड़ी पर 'पापनाश' तीर्थकुंड हैं जो महान तपस्वी गौतम ऋषि से संबंधित माना जाता है. तुलजापुर परिवेश में रामवरदायिनी, बारालिंग, मातंगी देवी, कालभैरव-टोलभैरव, राम मंदिर, मुद्गलेश्वर आदि मंदिर हैं. 

हनुमान जी, मारुती मंदिर, तुलजापुर
तुलजा भवानी मंदिर के परिवेश में लगभग 13-14 वीं सदी के पुरावशेष भी दिखाई देते हैं.

हाथी शृंखला (लगभग 13 वीं सदी), तुलजापुर
तुलजापुर में जगह-जगह पर मध्यकाल में बनवाई गईं बावड़ियाँ (कुंड) भी हैं. इनमें मंकावती तीर्थ सबसे विशाल है. तुलजापुर में मध्यकाल के 'गधेगल' (Ass-curse stones) एवं कुछ शिलालेख भी हैं.
गधेगल, मारुती मंदिर (कल्याण चावडी के पास), तुलजापुर
तुलजापुर में स्थित मठ एवं मंदिर (तुलजापुर शहर)
सिद्ध गरीबनाथ मठ
माना जाता है कि इस मठ की स्थापना सिद्ध गरीबनाथ ने की थी. वे तुलजा भवानी माता के निस्सीम भक्त थे. इसी मठ में उन्होंने 'हिंगलाज' माता के मंदिर की स्थापना भी की. यहाँ नियमित धूनी प्रज्वलित की जाती है. दशहरे के समय होम-हवन भी किया जाता है. हिंगलाज माता एवं समाधि स्थानों की पूजा पारंपरिक वाद्यों द्वारा नियमित रूप से की जाती है. महंत मावजीनाथ, महंत प्रकाशनाथ, महंत तुकनाथ इस प्रकार मठ की पारंपरिक शिष्य परंपरा है. वर्तमान महंत मावजीनाथ मठाधिपति है. भ्रमण करते हुए आनेवाले साधु-सन्यासियों की व्यवस्था इस मठ में की जाती है. इस मठ में गरीबनाथ जी की समाधि है.

हिंगलाज माता, गरीबनाथ मठ, तुलजापुर
महंत भारती बुवा का मठ
छत्रपति शिवाजी महाद्वार से आराधवाडी के पीछे लगभग डेढ़ किमी की दूरी पर भारती बुवा का मठ है. इस मठ की स्थापना 'रणछोड़ भारती' नामक गोसावी ने 18वीं सदी में की थी. इस मठ में माता के पारंपरिक खेल खेलने की जगह भी है. मठ परिसर में रणछोड़ भारती, गोविन्द भारती, गणेश भारती, गजेन्द्र भारती आदि सज्जनों की समाधियाँ हैं. रणछोड़ भारती, दशनामी गोसावी थे. छत्रपति शाहू ने मठ एवं अन्य विधियों के लिए कुछ गाँव दान में दिए थे.

महंत वाकोजी बुवा का मठ
मंदिर के दक्षिण में स्थित हिस्से में तथा छत्रपति शिवाजी महाद्वार से आगे बाईं ओर यह मठ स्थित है. सभी धार्मिक विधियाँ जैसे– काकड़ आरती, रक्षापूजा, अभिषकों के बाद की धूप आरती एवं अन्य पारंपरिक अधिकार भी इन्हीं के पास है. महंत तुकोजी बुवा वर्तमान में महंत है.

अरण्यगोवर्धन मठ
यह मठ शुक्रवार पेठ में है. इसकी स्थापना महंत तुको जनार्दन जी ने की थीं. यह मठ दशनामी संन्यासी मत से संबंधित है. फिलहाल भावसार क्षत्रिय समाज इसकी व्यवस्था देखता है. इस मठ में प्राचीन मंदिर भी है, जिसमें श्री रामवरदायिनी माता की मूर्ति है. माता के हाथों में विभिन्न शस्त्रास्त्र हैं. माना जाता है कि सीता की ख़ोज पर निकले प्रभु श्रीराम जी यहाँ कुछ देर ठहरे थे. यहाँ से पास ही 'रामदरा' नामक तालाब भी है. 


हमरोजी बुवा मठ
शिवाजी महाराज महाद्वार से बाईं ओर यह मठ स्थित है. यहाँ के मठाधिपति के पास देवी के जमादार खाने की व्यवस्था थी. इन मठों के अलावा 'नारायण गिरी मठ' भी तुलजापुर में स्थित है.

धाकटे तुलजापुर की भवानी माता 
सन 1960 में तुलजापुर शहर से पास ही श्री. रामचंद्र माली जी के खेत में जुताई के समय माता की मूर्ति प्राप्त हुई. गाँववालों ने इस मूर्ति की स्थापना गाँव में ही की. वर्तमान में यह परिसर तुलजापुर का ही एक हिस्सा बन चुका है.

तुलजापुर सड़क मार्ग से समूचे देश से जुड़ा हुआ है. इसी शहर से राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक-211 जाता है. यहाँ आने के लिए नजदीकी रेल-स्टेशन सोलापुर एवं उस्मानाबाद हैं, जहाँ से सरकारी एवं निजी बसों की समुचित व्यवस्था हैं. भक्तगणों के निवास के लिए धर्मशाला तथा लॉज की व्यवस्था भी उपलब्ध है. यहाँ से 'चिवरी' की माता का मंदिर-27 किमी, रामलिंग-40 किमी, खंडोबा मंदिर, अणदूर-28 किमी तथा 'आपसिंगा' नामक प्राकृतिक-स्थल केवल 7 किमी की दूरी पर स्थित है, जो सातवाहन-काल से ही मानव की गतिविधियों का केंद्र रहा है. यहाँ एक गढ़ी एवं भव्य प्रवेशद्वार भी है, जो दर्शनीय है.
भव्य प्रवेशद्वार (वेस), आपसिंगा
तुलजापुर से अन्य प्रसिद्ध स्थानों का अंतर इस प्रकार है-
(धाराशिव-22 किमी, नलदुर्ग-33 किमी, तेर-43 किमी, सोलापुर-48 किमी, बार्शी-51 किमी, अक्कलकोट-65 किमी, लातुर-76 किमी, पंढरपुर-101 किमी, अम्बाजोगाई-106 किमी, बसवकल्याण-112 किमी, कलबुर्गी-145 किमी, गाणगापुर-145 किमी, विजयपुरा-145 किमी, नांदेड-209 किमी, औरंगाबाद-264 किमी, पुणे-275 किमी, शिरडी-293 किमी, हैदराबाद- 298 किमी, मुंबई-438 किमी)