आज से लगभग 2000 वर्ष पूर्व वर्तमान में महाराष्ट्र के उस्मानाबाद (धाराशिव) जिले में स्थित 'तेर' विश्वस्तर पर प्रसिद्ध व्यापारिक केंद्र
के रूप में जाना जाता था. 'पेरिप्लस ऑफ़ द एरिथ्रीयन सी' नामक प्राचीन रोमन ग्रंथ में इसकी समृद्धि का उल्लेख मिलता है. सातवाहन कालीन प्रतिष्ठाण (पैठण), भोगवर्धन
(भोकरधन), जुन्नर, भडोच आदि प्रसिद्ध स्थलों में 'तगर' अथवा 'तेर' प्रसिद्ध रहा
है. पुराणों में तेर को 'सत्यपुरी' कहा गया है. यहाँ पर हुए पुरातात्त्विक उत्खननों में रोमन काल से संबंधित विभिन्न
प्रमाण पुरावशेष के रूप में पाए गए हैं. इन पुरावशेषों से यह सिद्ध हो चुका है कि
प्राचीन काल में तेर का संबंध रोमन साम्राज्य (वर्तमान में यूरोप महाद्वीप का भाग) से था.
पुरातात्त्विक
दृष्टि से यह स्थान बहुत ही समृद्ध है. यहाँ जगह-जगह प्राचीन पुरावशेष बिखरे पड़े
हैं. इस कारण संपूर्ण तेर क्षेत्र 'राष्ट्रीय संपदा' बन गया है.
महाराष्ट्र के प्राचीन मंदिरों में यहाँ के मंदिरों का स्थान महत्त्वपूर्ण है. इतना सब कुछ होने के
बावजूद भी यह स्थान सामान्य जनता में विट्ठल भक्त संत 'गोरा (गोरोबा काका) कुंभार' के गाँव के रूप में ही अधिक पहचाना जाता है. संत गोरोबाकाका कुंभार, महान संत ज्ञानेश्वर के समकालीन थे. संत मंडली में वे ज्येष्ठ माने जाते हैं. उनके अभंग 'सर्वसंग्रहगाथा' नामक ग्रंथ में मिलते हैं. माना जाता है कि 13 वीं शताब्दी में यह स्थान वैष्णवों का एक महत्वपूर्ण गढ़ बन चुका था. विभिन्न संतों ने इस स्थान की महिमा को नवाज़ा है. धार्मिक आडंबर एवं अंधश्रद्धाओं को उन्होंने अपने पैरों तले रौंदा. वे महाराष्ट्र के अन्य
संतों के मार्गदर्शक भी थे. उनके घर-आँगन की नींव आज भी यहाँ दिखाई जाती है. इनके
घर को 'राज्य संरक्षित स्मारक' का दर्जा प्राप्त हुआ है. यहाँ से होकर बहनेवाली
'तेरणा' नदी तट पर प्राचीन कालेश्वर मंदिर के पास ही संत गोरा कुंभार का समाधि
मंदिर स्थित है. चैत एकादशी से अमावस्या तक यहाँ विशाल यात्रा का आयोजन होता है. इस समय
महाराष्ट्र के कोने-कोने से श्रद्धालु आते हैं.
तेर में स्थित 'त्रिविक्रम मंदिर'
वास्तुकला की दृष्टि से भारत के दुर्लभ मंदिरों में से एक है. यह महाराष्ट्र के
सबसे प्राचीन मंदिरों में से भी एक है. सातवाहन काल में फली-फूली वास्तुकला का
प्रभाव इस मंदिर पर साफ़-साफ़ दिखाई देता है. समूचा मंदिर ईंटों से बनवाया गया है.
त्रिविक्रम मंदिर, तेर |
गर्भगृह में विष्णु
भगवान की विशाल एवं सुन्दर मूर्ति है. यह मूर्ति विष्णु के वामन अवतार से संबंधित है, जिसमें वे अपने एक पैर से आकाश को समेट रहे हैं. पास में राजा बलि एवं उनकी
पत्नी तथा शुक्राचार्य को भी दिखाया गया है. विष्णु का मुकुट बहुत ही सुंदर है.
माना जाता है कि इस मंदिर में प्रसिद्ध संत नामदेव ने भजन-कीर्तन किया था.
सभामंड़प, त्रिविक्रम मंदिर, तेर |
कालेश्वर मंदिर, तेर |
यहाँ पर स्थित 'उत्तरेश्वर मंदिर' अपनी
ख़ास वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है. इस मंदिर के काठ-दरवाजे पर अप्रतिम कारीगरी की गई है. यह अपने आप में एक अनूठा उदाहरण है.
उत्तरेश्वर मंदिर, तेर |
यह विशिष्ठ प्रकार का दरवाजा तेर के 'लामतुरे संग्रहालय' में सुरक्षित रखा गया है.
इस संग्रहालय में प्राचीन काल के सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक,
व्यापारिक जीवन को दर्शानेवाली बहुत सारी वस्तुओं को भी सुरक्षित
रखा गया है. यह संग्रहालय दर्शनीय है. सातवाहन एवं रोमन सिक्के, मूर्तियाँ, मणि,
टेराकोटा से बनी मूर्तियाँ एवं वस्तुएँ, मर्तबान, स्तुपावशेष आदि पुरावशेष यहाँ
देखने मिलते हैं. यहाँ ईंटों से निर्मित लगभग 2000 वर्ष पुराना बौद्ध स्तूप का
ढाँचा भी प्राप्त हुआ है. तेर में एक प्राचीन जैन मंदिर भी है.
जैन प्रतिमा, जैन मंदिर, तेर |
उपर्युक्त
सभी मंदिर, सफ़ेद मिट्टी के टीले, स्तूप आदि रचनाओं को राज्य संरक्षित स्मारकों का
दर्जा प्राप्त हुआ है. इस गाँव में पानी पर तैरनेवाली ईंटें भी मिलती हैं.
प्राचीन पुरातात्विक टीले, तेर |
उस्मानाबाद (धाराशिव)
उम्दा काम
उत्तर द्याहटवाधन्यवाद
उत्तर द्याहटवाWell-done Vijay sir....very happy to see your research work....best wishes for further journey....
उत्तर द्याहटवाThank you very much Sir!
उत्तर द्याहटवाGreat 👍 👍 👍 research Vijay sir
उत्तर द्याहटवाThanks for visiting our village and exploring
उत्तर द्याहटवा